कुशेश्वरस्थान :मिथिला नगरी दरभंगा के धार्मिक महत्व का प्रतीक

कुशेश्वरस्थान :मिथिला नगरी दरभंगा के धार्मिक महत्व का प्रतीक


मिथिला नगरी दरभंगा वैसे तो कई ऐतिहासिक इमारतों का गवाह रहा है लेकिन आज हम इस नगर के धार्मिक महत्व से जुड़े एक स्थान की बात करेंगे

हम बात कर रहे हैं कुशेश्वरस्थान की

परिचय:-
कुशेश्वर स्थान दरभंगा जिला मुख्यालय से 70  कि०मी० दक्षिण-पूर्व में स्थित है । यहाँ तीन नदियों के मुहाने पर प्रकृति के बीच कुशेश्वर महादेव का मन्दिर अवस्थित है । यहाँ आने पर भक्तों को शान्ति की परम अनुभूति मिलती है ।

कुशेश्वरस्थान की महिमा:-

कुशेश्वरस्थान की महिमा इतनी निराली है जहाँ सम्पूर्ण मिथिलांचल , नेपाल के पड़ोसी जिला के अलावा प० बंगाल और झारखंड से भी भक्त यहाँ सालों भर आते रहते हैं लेकिन श्रावण में के अवसर पर इस मन्दिर की बात ही अलग होती है ।

इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आकर बाबा कुशेश्वर नाथ को जलाभिषेक करते हैं तथा पूजा अर्चना कर बाबा कुशेश्वर नाथ से आशीर्वाद ग्रहण करते हैं । नरक निवारण चतुर्दशी एवं महाशिवरात्रि के अवसर पर कुशेश्वर स्थान के बाबा मन्दिर में विशेष पूजा-अर्चना एवं आयोजन होते हैं । माघ महीना में भी भक्त यहाँ आकर जलाभिषेक करते हैं ।

कुशेश्वर स्थान का इतिहास:-
इस महादेव स्थान का नाम कुशेश्वर स्थान क्यों पड़ा इस सम्बन्ध में कई कथाएँ प्रचलित हैं ।कुशेश्वर स्थान की चर्चा पुराणों में भी की गयी है । कुछ लोग कुशेश्वर स्थान को भगवान राम के पुत्र कुश से जोड़ कर देखते हैं तो कुछ लोग राजा कुशध्वज से जोड़ते हैं ।

कहा जाता है कि मन्दिर का निर्माण राजा कुशध्वज ने करबाया था इसलिए इस मन्दिर का नाम इन्हीं के नाम पर कुशेश्वर स्थान रखा गया।

मंदिर निर्माण की कथा के बारे में क्या कहते हैं मन्दिर के पुजारी:-

मन्दिर के पुजारी के अनुसार कुशेश्वर स्थान उपासना के साथ ही साधना का भी बहुत बड़ा केंद्र रहा है । उन्होंने कहा कि यहाँ अंकुरित शिव स्थापित हैं । इस सम्बन्ध में उसने एक कथा भी सुनाई जो कि इस प्रकार है –

हजारों साल पहले यहाँ कुश का घना जंगल था । जहां पर बहुत से चरवाहा अपनी अपनी पशुओं को चराने के लिए आया करता था ।एक बार की बात है रामपुर रोता गाँव का एक चरवाहा जिसका नाम खागा हजारी था देखा कि एक स्थान पर बहुत से दुधारू गाय अपनी दूध गिरा रही है ।

यह बात उसने लोगों को जाकर बताई । गाँव के लोग भी आकर यह दृश्य देखे । जिस जगह पर दूध गिर रहा था उस जगह की खुदाई की गयी तो वहां से एक शिव लिंग निकला । तभी से वहां पर भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाने लगी । और यही वजह है के इन्हें अंकुरित महादेव कहा जाता है ।

 1902  ई० में यहाँ फूस का मन्दिर बनाया गया । फिर 1970ई० में स्थानीय व्यापारियों ने मिलकर बाबा मन्दिर का निर्माण कराया ।

शिवलिंगम:-

श्रावण में होता है खास इंतजाम:-

मिथिला सदियों से शिव भक्ति का प्रमुख केंद्र रहा है । कुशेश्वर बाबा की दर्शन के लिए यहाँ सावन सबसे अधिक श्रद्धालु यहाँ आते हैं  मिथिलांचल वाशी सम्पूर्ण मनोयोग से भगवान् भोले भंडारी की पूजा अर्चना करते हैं । श्रावण में सभी शिवालयों को विभिन्न रंगों से रंग रोगन कर सजाया जाता है । कुशेश्वर स्थान में तो शिव मन्दिर परिसर के साथ ही शिव गंगा घाट एवं अन्य जगहों को श्रावण के अवसर पर सजाया गया है ।

शिव मन्दिर के आसपास बड़े बाहनों के आवाजाही पर रोक लगा दी जाती है । श्रावणी मेला में यात्रियों की विश्राम के लिए पडोसी जिला खगड़िया के धर्मशाला में व्यवस्था स्थानीय न्यास समिति की ओर से की जाती है ।

शिवगंगा तालाब में भोले शंकर को अवस्थित करने की तयारी:-
शिव गंगा तालाब के भीच भाग में ८ फीट मोटी जाईठ (नदी के बीच में पानी का स्थर मापने को लगाई गयी लकड़ी) का निर्माण कर उसपर १५ फीट ऊँची और ८ फीट चौड़ी भगवान् भोले शंकर की मूर्ति का निर्माण कार्य हो रहा है और इनकी जटा से लगातार जल प्रवाहित होगी जो सारे शिव भक्तों का ध्यान भोले शंकर अपनी ओर आकर्षित करेंगी ।

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